Tuesday, July 10, 2007

मिटटी था किसने चाक पे रख कर घुमा दिया

मिटटी था किसने चाक पे रख कर घुमा दिया
वह कौन हाथ थे कि जो चाहा बना दिया

जो अब तलक छुपाती थी कमरे की रोशनी
रस्तों की तीरगी ने वोह सब कुछ दिखा दिया

परियों के देस वाली कहानी भी ख़ूब थी
बच्चों को जिसने फिर यूं ही भुखा सुला दिया

अब और क्या तलाश है क्यूं दीदारेज़ हो
मिटटी में बस वही था जो तुमने उगा दिया

कुछ अज़दहे से रेत पे कुछ बंद सीपियां
साहिल को लौटती हुई लहरों ने क्या दिया

(इजलाल मजीद)

1 comment:

विजेंद्र एस विज said...

क्या बात है..बहुत खूब..बहुत खूब..अच्छा लिखा है आपने.